प्रयागराज में रह रहें सतीश को आज बाबूजी का फोन आया था। बोल रहे थे "अब हमारी सामर्थ्य नहीं कि तुमको घर से पइसा भेज सकें। अब कर्ज भी किससे लूं कोई देने को तैयार भी तो नहीं।"
सतीश ने भारी मन से बोला "और एक महीना रूक जाइए बाबूजी
अगले महीना ही ssc की परीक्षा है। इस बार तैयारी भी अच्छी है। परीक्षा से पहले यदि घर चला गया तो घर पर पढ़ नहीं पाएंगे और सारी तैयारी चौपट हो जाएगी। इतने दिनों से जब भेज ही रहें हैं तो किसी तरह से बस एक महीने का और भेज दीजिए।"
बात किसी तरह सतीश की माई तक पहुंच गई। माई ने तुरंत सतीश को फोन लगाया और बोली "तु चिंता मत करिहअ लाल इ बार बाबूजी ना भेजिहे त हम भेज देब ।
सतीश का एक बार मन हुआ कि पूछ लूं "कि माई तुम कहां से रूपया भेजबु ?" लेकिन सहम गया। और उनके दिलो-दिमाग में ये प्रश्न कोंधने लगा आखिरकार माई कहां से रूपया भेजेगी? माई अपनी गहना तो....... नहीं.. नहीं... नहीं। माई ऐसा नहीं करेंगी।
सतीस को का मालूम माई कुछु कर देगी लाल के लिये 🙏🙏
बस सरकार को दिखाई नही देता माई और भाई का ये त्याग
🙏
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