सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सनातन ग्रंथ में मौजूद है , सातों महादेश का रहस्य ।

सनातन ग्रंथ में मौजूद है , सातों महादेश का रहस्य ।
जिसकी खोज 1400 ईसा में हुईं, लेकिन हमारे धर्म ग्रंथों में लाखो साल पहले लिखी गई थी।
हमारा धर्म पहले संपूर्ण धरती पर व्याप्त था। 
पहले धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बूद्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। राजा प्रियव्रत संपूर्ण धरती के और राजा अग्नीन्ध्र सिर्फ जम्बूद्वीप के राजा थे। 

जम्बूद्वीप में नौ खंड हैं- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इसमें से भारतखंड को भारत वर्ष कहा जाता था। भारतवर्ष के 9 खंड हैं- इसमें इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। भारतवर्ष के इतिहास को ही हिन्दू धर्म का इतिहास नहीं समझना चाहिए।

ईस्वी सदी की शुरुआत में जब अखंड भारत से अलग दुनिया के अन्य हिस्सों में लोग पढ़ना-लिखना और सभ्य होना सीख रहे थे, तो दूसरी ओर भारत में विक्रमादित्य, पाणीनी, चाणक्य जैसे विद्वान व्याकरण और अर्थशास्त्र की नई इमारत खड़ी कर रहे थे। इसके बाद आर्यभट्ट, वराहमिहिर जैसे विद्वान अंतरिक्ष की खाक छान रहे थे। वसुबंधु, धर्मपाल, सुविष्णु, असंग, धर्मकीर्ति, शांतारक्षिता, नागार्जुन, आर्यदेव, पद्मसंभव जैसे लोग उन विश्वविद्यालय में पढ़ते थे जो सिर्फ भारत में ही थे। तक्षशिला, विक्रमशिला, नालंदा आदि अनेक विश्व विद्यालयों में देश विदेश के लोग पढ़ने आते थे।

तो यदि आप हिन्दू हैं तो गर्व कीजिए कि आप एक महान विरासत का हिस्सा हैं, अपने धर्मग्रंथो का अध्ययन कीजिये और उनके ज्ञान से स्वयं को उन्नत और श्रेष्ठ बनाइयेI और यदि आप हिन्दू नहीं भी हैं तब भी हर मनुष्य को स्वयं को अच्छाई की और ले जाने का जन्मजात हक हैI आइये और हिंदुत्व की महान विरासत से, अद्भुत ज्ञान से अपने जीवन का निर्माण कीजियेI

जय श्री राम

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

knowledge1

कहानी : कैसे आया जूता ⧭

ब्रह्मचारिणी की कथा

करपदमाभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिणयनुनाया।                            माँ दुर्गा को नव शक्तियोंका दूसरा साप ब्रह्मचारिणीका है। यहाँ 'ब' शब्दका अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात् तपकी चारिणी-पका आचरण करनेवाली। कहा भी है-वेदस्तस्य तो ब्रह्म-वेद. तत्व और तप 'ब्रह' शब्दके अर्थ है। ब्रह्माचारिणी देवीका स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं आत्यस भयो।के दाहिने हाथ जपकी माला एवं बायें हाथमें कमण्डलु रहता है। अपने पूर्वजन्म जब हिमालयके घर पुत्री-शाप उत्पत्र जय भारदके उपदेशसे इमो भगवान् शङ्करजीको पति-रूपमें पास करनेके लिये अत्यन्त कठिन तपस्या की थी। सी दुष्कर तपस्याके कारण इन्हें तपाचारिणी अर्थात् प्रहाचारिणी नामसे अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल-मूल खाकर व्यतीत किये थे। सी वर्षातक केवल शाकपा निर्वाह किया था। कुछ दिनोंतक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाशके नीचे वर्षा और धूपके अचानक का सहे। इस कठिन तपक्षांके पश्चात् तीन हजार बर्षातक केबल जमीनपर टूटकर गिरे हए बेलपत्रोंको खाकर वह अहर्नि...

उल्लू का राज्याभिषेक

कौवों और उल्लुओं की शत्रुता बड़ी पुरानी है। मगर कितनी पुरानी और क्यों है इसका विचार कम ही लोगों ने किया अथवा करना चाहा। बौद्ध परम्परा में उपर्युक्त दो शत्रुओं के वैमनस्य की एक कथा प्रचलित है। यहाँ वही कथा एक बार फिर सुनाई जा रही है। सम्बोधि प्राप्त करने के बाद बुद्ध जब श्रावस्ती स्थित जेतवन में विहार कर रहे थे तो उनके अनुयायियों ने उन्हें उल्लुओं द्वारा अनेक कौवों की संहार की सूचना दी। बुद्ध ने तब यह कथा सुनायी थी। सृष्टि के प्रथम निर्माण चक्र के तुरंत बाद मनुष्यों ने एक सर्वगुण-सम्पन्न पुरुष को अपना अधिपति बनाया; जानवरों ने सिंह को ; तथा मछलियों ने आनन्द नाम के एक विशाल मत्स्य को। इससे प्रेरित हो कर पंछियों ने भी एक सभा की और उल्लू को भारी मत से राजा बनाने का प्रस्ताव रखा। राज्याभिषेक के ठीक पूर्व पंछियों ने दो बार घोषणा भी की कि उल्लू उनका राजा है किन्तु अभिषेक के ठीक पूर्व जब वे तीसरी बार घोषणा करने जा रहे थे तो कौवे ने काँव-काँव कर उनकी घोषणा का विरोध किया और कहा क्यों ऐसे पक्षी को राजा बनाया जा रहा था जो देखने से क्रोधी प्रकृति का है और जिसकी एक वक्र दृष्टि से ही लोग ...