और आप आज तक इसे समझ नही पाए..
बकरी ईद से पहले पूरा अब्दुल का परिवार करीब 10 दिनों तक बकरी/बकरे को रखता है..
इस समय के दौरान, वे इसे खिलाते है इसे नहलाते है इसके साथ खेलते है और लगभग एक बच्चे की तरह इसकी देखभाल करते है..
घर के बच्चे इसके प्रति बहुत स्नेही हो जाते है..
फिर एक सुबह बकरे को #हलाल किया जाता है..
बच्चों की आंखों के ठीक सामने..
बच्चे शुरू मे क्रोधित, उन्मादी और उदास हो जाते है लेकिन अंततः उन्हें इसकी आदत हो जाती है..
यह प्रक्रिया 1 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे पर हर साल दोहराई जाती है..
जब वे 18 वर्ष के होते हैं, तब तक वे जान जाते हैं कि #इस्लाम के लिए जीवन की सबसे प्रिय वस्तु की भी कुर्बानी दी जाती है यहां तक कि जिस बकरे को आप पाल रहे थे और जिसे प्यार से पाल-पोस कर आपने बड़ा किया वो भी मायने नहीं रखता..
इसलिए जब वे आपसे दोस्ती करते हैं, आपके लिए मददगार होते हैं, आपको भाई-बहन कहते हैं, और आपके करीब हो जाते हैं.....
#याद_रखें .....
कि उन्होंने बचपन से हर साल इस कला का अभ्यास किया है..
आप भी अब्दुल के लिए बकरी या बकरे से ज्यादा कुछ नही है..
#तुम्हारा भी .....अब्दुल अलग नही है, वो mc भी एक प्रशिक्षित #कसाई है....
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