सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

इस चित्र में श्रीकृष्ण जी का पैर युद्ध करते समय उनकी पत्नी सत्यभामा के पैर में क्यों है ? जरा पढ़िये मन रोमांचित हो जाएगा!!!

इस चित्र में श्रीकृष्ण जी का पैर युद्ध करते समय उनकी पत्नी सत्यभामा के पैर में क्यों है ? 
           जरा पढ़िये मन रोमांचित हो जाएगा!!! 

नरकासुर वध के लिए गए श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा का यह चित्र है। नरकासुर के छोड़े अस्त्र को भेदकर दूसरा वार करने के लिए तैयार सत्यभामा के भावों को देखकर लगता है कि यह वार निर्णायक होगा। 
सत्यभामा दिखने में जितनी सुंदर है, युद्धकला में भी उतनी ही निपुण है। 

और जरा श्रीकृष्ण को तो देखिए, नीचे गरुड़ पर बैठे हैं। 
बाण छोड़ने के पश्चात झटका लगने से सत्यभामा का संतुलन न बिगड़े इसलिए अपने पैर से सत्यभामा का पिछला पैर अडा रखा है। 

श्रीकृष्ण के हाथ में संसार का सबसे अचूक मारक अस्त्र #सुदर्शन_चक्र है। किंतु जब पत्नी युद्ध कर रही है, श्रीकृष्ण स्वयं आड़ लेकर बैठे हैं और पत्नी के युद्ध कौशल को देखकर श्रीकृष्ण बलिहारी हैं, उसे कौतुक से देख रहे हैं। 

सनातन के इतर विश्व के किसी पंथ, संप्रदाय, विचारधारा में #नारीवाद के ऐसे मुक्त विचार का उदाहरण नहीं मिलता, जहाँ स्त्री पुरुष स्वतंत्र भी है और परस्पर पूरक भी! 
जहाँ नारी व्यक्तित्व भी है, व्यक्ति भी! जहाँ पुरुष स्त्री की स्वतंत्रता से विस्मित भी है तथा उसका आधार भी! 
कितना सुंदर विचार! कैसा अद्भुत अध्यात्म! कैसा अद्वैत! 
अद्भुत!! 

कितना कुछ है हमारे #सनातन_धर्म में, संस्कृति में जिसपर हम गर्व कर सकें।
 
बस जिहादी, वामपंथी और लिबरांडुओं द्वारा फैलाई गई मनगढ़ंत तथा विषैली कहानियों से परे सत्य देखने, समझने की नजर और इच्छा होनी चाहिए!

                       🙏#जय_सनातन⛳

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

knowledge1

कहानी : कैसे आया जूता ⧭

ब्रह्मचारिणी की कथा

करपदमाभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिणयनुनाया।                            माँ दुर्गा को नव शक्तियोंका दूसरा साप ब्रह्मचारिणीका है। यहाँ 'ब' शब्दका अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात् तपकी चारिणी-पका आचरण करनेवाली। कहा भी है-वेदस्तस्य तो ब्रह्म-वेद. तत्व और तप 'ब्रह' शब्दके अर्थ है। ब्रह्माचारिणी देवीका स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं आत्यस भयो।के दाहिने हाथ जपकी माला एवं बायें हाथमें कमण्डलु रहता है। अपने पूर्वजन्म जब हिमालयके घर पुत्री-शाप उत्पत्र जय भारदके उपदेशसे इमो भगवान् शङ्करजीको पति-रूपमें पास करनेके लिये अत्यन्त कठिन तपस्या की थी। सी दुष्कर तपस्याके कारण इन्हें तपाचारिणी अर्थात् प्रहाचारिणी नामसे अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल-मूल खाकर व्यतीत किये थे। सी वर्षातक केवल शाकपा निर्वाह किया था। कुछ दिनोंतक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाशके नीचे वर्षा और धूपके अचानक का सहे। इस कठिन तपक्षांके पश्चात् तीन हजार बर्षातक केबल जमीनपर टूटकर गिरे हए बेलपत्रोंको खाकर वह अहर्नि...

उल्लू का राज्याभिषेक

कौवों और उल्लुओं की शत्रुता बड़ी पुरानी है। मगर कितनी पुरानी और क्यों है इसका विचार कम ही लोगों ने किया अथवा करना चाहा। बौद्ध परम्परा में उपर्युक्त दो शत्रुओं के वैमनस्य की एक कथा प्रचलित है। यहाँ वही कथा एक बार फिर सुनाई जा रही है। सम्बोधि प्राप्त करने के बाद बुद्ध जब श्रावस्ती स्थित जेतवन में विहार कर रहे थे तो उनके अनुयायियों ने उन्हें उल्लुओं द्वारा अनेक कौवों की संहार की सूचना दी। बुद्ध ने तब यह कथा सुनायी थी। सृष्टि के प्रथम निर्माण चक्र के तुरंत बाद मनुष्यों ने एक सर्वगुण-सम्पन्न पुरुष को अपना अधिपति बनाया; जानवरों ने सिंह को ; तथा मछलियों ने आनन्द नाम के एक विशाल मत्स्य को। इससे प्रेरित हो कर पंछियों ने भी एक सभा की और उल्लू को भारी मत से राजा बनाने का प्रस्ताव रखा। राज्याभिषेक के ठीक पूर्व पंछियों ने दो बार घोषणा भी की कि उल्लू उनका राजा है किन्तु अभिषेक के ठीक पूर्व जब वे तीसरी बार घोषणा करने जा रहे थे तो कौवे ने काँव-काँव कर उनकी घोषणा का विरोध किया और कहा क्यों ऐसे पक्षी को राजा बनाया जा रहा था जो देखने से क्रोधी प्रकृति का है और जिसकी एक वक्र दृष्टि से ही लोग ...