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जानिए क्यों मनाया जाता है छठ, क्या है इसका पौराणिक महत्व

जानिए क्यों मनाया जाता है छठ, क्या है इसका पौराणिक महत्व लखनऊ. उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में छठ का विशेष महत्व है। छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को 'चैती छठ' और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को 'कार्तिकी छठ' कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है। माता सीता ने भी की थी सूर्यदेव की पूजा छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल

पुरातन काल की तकनीक वा ज्ञान

पुरातन काल की तकनीक वा ज्ञान आजसे उन्नत था,,             रावण ने सीताजी का अपहरण पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) से किया और पुष्पक विमान द्वारा हम्पी (कर्नाटक), लेपक्षी (आँध्रप्रदेश) होते हुए श्रीलंका पहुँचा। #अद्भुत_आश्चर्यजनक_अविश्वशनिय आश्चर्य होता है जब हम आधुनिक तकनीक से देखते हैं कि नासिक, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी लाइन में हैं। अर्थात ये पंचवटी से श्रीलंका जाने का सबसे छोटा रास्ता है। अब आप ये सोचिये उस समय Google Map नहीं था जो Shortest Way बता देता। फिर कैसे उस समय ये पता किया गया कि सबसे छोटा और सीधा मार्ग कौनसा है ? अगर भारत विरोधियों के अहम् संतुष्टि के लिए मान भी लें कि चलो रामायण केवल एक महाकाव्य है जो वाल्मीकि ने लिखा तो फिर ये बताओ कि उस ज़माने में भी गूगल मैप नहीं था तो रामायण लिखने वाले वाल्मीकि को कैसे पता लगा कि पंचवटी से श्रीलंका का सीधा छोटा रास्ता कौनसा है? महाकाव्य में तो किन्ही भी स्थानों का ज़िक्र घटनाओं को बताने के लिए आ जाता। लेकिन क्यों वाल्मीकि जी ने सीता हरण के लिए केवल उन्ही स्थानों का ज़िक्र किया जो पुष्पक विमान का सबसे छोटा और बिलकु

इस चित्र में श्रीकृष्ण जी का पैर युद्ध करते समय उनकी पत्नी सत्यभामा के पैर में क्यों है ? जरा पढ़िये मन रोमांचित हो जाएगा!!!

इस चित्र में श्रीकृष्ण जी का पैर युद्ध करते समय उनकी पत्नी सत्यभामा के पैर में क्यों है ?             जरा पढ़िये मन रोमांचित हो जाएगा!!!  नरकासुर वध के लिए गए श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा का यह चित्र है। नरकासुर के छोड़े अस्त्र को भेदकर दूसरा वार करने के लिए तैयार सत्यभामा के भावों को देखकर लगता है कि यह वार निर्णायक होगा।  सत्यभामा दिखने में जितनी सुंदर है, युद्धकला में भी उतनी ही निपुण है।  और जरा श्रीकृष्ण को तो देखिए, नीचे गरुड़ पर बैठे हैं।  बाण छोड़ने के पश्चात झटका लगने से सत्यभामा का संतुलन न बिगड़े इसलिए अपने पैर से सत्यभामा का पिछला पैर अडा रखा है।  श्रीकृष्ण के हाथ में संसार का सबसे अचूक मारक अस्त्र #सुदर्शन_चक्र है। किंतु जब पत्नी युद्ध कर रही है, श्रीकृष्ण स्वयं आड़ लेकर बैठे हैं और पत्नी के युद्ध कौशल को देखकर श्रीकृष्ण बलिहारी हैं, उसे कौतुक से देख रहे हैं।  सनातन के इतर विश्व के किसी पंथ, संप्रदाय, विचारधारा में #नारीवाद के ऐसे मुक्त विचार का उदाहरण नहीं मिलता, जहाँ स्त्री पुरुष स्वतंत्र भी है और परस्पर पूरक भी!  जहाँ नारी व्यक्तित्व भी है, व्यक्ति भी! जहाँ

मां स्कंदमाता की कथा

स्कंदमाता की कथा  सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।  शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥   पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।    इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।    शास्त्रों में इसका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र