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कथा मां शैलपुत्री की

 वन्दे वाशितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री कास्विनीम् । 


                   माँ दुर्गा अपने पहले स्वरूप शैलपुत्री के नामसे जानी जाती है।
'लापुरी' नाम पाया। वृषभ-स्थिता न माताजीके ने हाथ मिल
और बायें हाथ कमल-पुष्प सोभित है। हो स bit पूर्ण है। ___अपने पूर्वजन्ममें ये प्रजापति दक्षकी कन्याके रूपमें उत्पन्न हुई
थी। तब इनका नाम 'सती' था। इनका विवाह भगवान् शहरजीसे हुआ था। एक बार प्रजापति दक्षने एक बहुत बड़ा या किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओंको
अपना-अपना पा-भाग प्रान करनेके लिये नियनित किया। किनु शहरजीको उन्होंने इस यजमें निचित नहीं किया। सतीने जब सुना कि हमारे पिता एक अत्यन्त विशाल यजका अनुमान कर ये है, तब वहाँ जाने के लिये उनका मन विकल हो उठा। अपनी यहाा उहोंने शहरजीको बतायी। सारी बातोपर विचार करनेके बाद उन्होंने कहा-"प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे
है। अपने गहमें उन्होंने सारे देवताओंको निमन्वित किया है। उनके बज-भाग भी समर्पित किये १, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचनातक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति तुम्हारा यहाँ आना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।" शङ्करजीके इस उपदेशसे सतीका प्रबोध नहीं हुआ। पिताका या देखने, वहाँ जाकर माता और बहनोंसे मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रपल आग्रह देखकर भगवान् शहरजीने उन वहाँ जानेकी अनुमति दे दी।
सतीने पिताके पर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेमके साथ बात-चीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे इए है। केवल उनकी माताने बेहसे उन गले लगाया। बहनों की बातोय व्यंग्य और उपहासके भाव भरे हुए थे। परिजनोंके इस अपहारसे उनके मनको बहुत क्लेश पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान् शहरजीके प्रति तिरस्कारका भाव भरा हुआ है। दक्षने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सतीका हदय क्षोभ, ग्लानि और शोधसे सन्तान हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान् शङ्करजीकी बात न मान, यहाँ आकर ने बहुत बड़ी गलती की है।
वह अपने पति भगवान् शङ्करके इस अपमानको सहन सकी। उन्होंने अपने उससपको शक्षण यही योगाग्निदारा जलाकर जाम कर दिया। बसपातके समान इस शरण-दुखद घटनाको सुनकर मरजीनेड हो अपने गणों को भेजकर दक्षके उस बजका पूर्णत: विस करा दिया।
सतीने योगाशिवाय अपने शरीरको भस्मकर अगले जन्म शैलराज हिमालयकी पुरीके सपने जम लियाइस बार वह 'शैलपुत्री' नामसे विख्यात हुई। पार्वती, हेमवती भी उनके नाम है। उपनिषदको एक कथाके अनुसार इसने हमवती स्वरूपसे देवताओंका गर्व-अंजन किया था।
शैलपुत्री' देवीका विवाह भी शहरजीसे ही हुआ। पूर्वजन्मकी भांति इस जन्म भी वह शिवजीकी अगिनी बनी। मा दुर्गा प्रथम शैलपुत्री दुर्गाका महत्व और शक्तियाँ अपत है। नवरात्रपूजनमें प्रथम दिवस की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिनकी उपासना योगी अपने मनको 'मूलाधार' चक्रमें स्थित करते है। यहीसे उनकी योगसाधनाका प्रारम्भ होता है।

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