सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

शनि की दसा

Shani Sade Sati: ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को बहुत ही अहम माना गया है। कुंडली में शनि के शुभ भाव में रहने पर जातक को जीवन की तमाम सुख-सुविधाएं और ऐशो आराम की प्राप्ति होती है। सभी ग्रहों में शनि सबसे धीमी चाल चलने वाले ग्रह हैं। शनि एक राशि से दूसरी राशि में जाने पर करीब ढ़ाई वर्षो का समय लेते हैं। शनि 24 जनवरी 2020 से मकर राशि में गोचर हैं। इसके बाद शनिदेव 29 अप्रैल 2022 कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। शनि के राशि बदलने पर कुछ राशि पर शनि की साढ़ेसाती लग जाती है और कुछ से उतर भी जाती है। साल 2020 से शनि के मकर राशि में होने से इस समय धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती चढ़ी हुई है। मिथुन और तुला राशि पर शनि की ढैय्या है। आइए जानते है इन तीन राशि से कब हटेगी शनि की साढ़ेसाती?
विज्ञापन



राशि
धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती कब तक?
29 अप्रैल 2020 से शनि मकर राशि को छोड़कर स्वयं की राशि कुंभ में प्रवेश कर जाएंगे। शनि के कुंभ राशि में प्रवेश करते ही धनु राशि पर से शनि की साढ़ेसाती का अंत हो जाएगा। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि शनि 2022 में वक्री चाल से चलते हुए फिर से मकर राशि में गोचर करेंगे। शनि के मकर राशि में वक्री और मार्गी होने से कुछ समय के लिए धनु राशि पर साढ़ेसाती लगेगी। 2023 से पूर्णरूप से धनु राशि पर से शनि साढ़ेसाती खत्म हो जाएगी।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

knowledge1

कहानी : कैसे आया जूता ⧭

ब्रह्मचारिणी की कथा

करपदमाभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिणयनुनाया।                            माँ दुर्गा को नव शक्तियोंका दूसरा साप ब्रह्मचारिणीका है। यहाँ 'ब' शब्दका अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात् तपकी चारिणी-पका आचरण करनेवाली। कहा भी है-वेदस्तस्य तो ब्रह्म-वेद. तत्व और तप 'ब्रह' शब्दके अर्थ है। ब्रह्माचारिणी देवीका स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं आत्यस भयो।के दाहिने हाथ जपकी माला एवं बायें हाथमें कमण्डलु रहता है। अपने पूर्वजन्म जब हिमालयके घर पुत्री-शाप उत्पत्र जय भारदके उपदेशसे इमो भगवान् शङ्करजीको पति-रूपमें पास करनेके लिये अत्यन्त कठिन तपस्या की थी। सी दुष्कर तपस्याके कारण इन्हें तपाचारिणी अर्थात् प्रहाचारिणी नामसे अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल-मूल खाकर व्यतीत किये थे। सी वर्षातक केवल शाकपा निर्वाह किया था। कुछ दिनोंतक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाशके नीचे वर्षा और धूपके अचानक का सहे। इस कठिन तपक्षांके पश्चात् तीन हजार बर्षातक केबल जमीनपर टूटकर गिरे हए बेलपत्रोंको खाकर वह अहर्नि...

उल्लू का राज्याभिषेक

कौवों और उल्लुओं की शत्रुता बड़ी पुरानी है। मगर कितनी पुरानी और क्यों है इसका विचार कम ही लोगों ने किया अथवा करना चाहा। बौद्ध परम्परा में उपर्युक्त दो शत्रुओं के वैमनस्य की एक कथा प्रचलित है। यहाँ वही कथा एक बार फिर सुनाई जा रही है। सम्बोधि प्राप्त करने के बाद बुद्ध जब श्रावस्ती स्थित जेतवन में विहार कर रहे थे तो उनके अनुयायियों ने उन्हें उल्लुओं द्वारा अनेक कौवों की संहार की सूचना दी। बुद्ध ने तब यह कथा सुनायी थी। सृष्टि के प्रथम निर्माण चक्र के तुरंत बाद मनुष्यों ने एक सर्वगुण-सम्पन्न पुरुष को अपना अधिपति बनाया; जानवरों ने सिंह को ; तथा मछलियों ने आनन्द नाम के एक विशाल मत्स्य को। इससे प्रेरित हो कर पंछियों ने भी एक सभा की और उल्लू को भारी मत से राजा बनाने का प्रस्ताव रखा। राज्याभिषेक के ठीक पूर्व पंछियों ने दो बार घोषणा भी की कि उल्लू उनका राजा है किन्तु अभिषेक के ठीक पूर्व जब वे तीसरी बार घोषणा करने जा रहे थे तो कौवे ने काँव-काँव कर उनकी घोषणा का विरोध किया और कहा क्यों ऐसे पक्षी को राजा बनाया जा रहा था जो देखने से क्रोधी प्रकृति का है और जिसकी एक वक्र दृष्टि से ही लोग ...