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मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उल्लू का राज्याभिषेक

कौवों और उल्लुओं की शत्रुता बड़ी पुरानी है। मगर कितनी पुरानी और क्यों है इसका विचार कम ही लोगों ने किया अथवा करना चाहा। बौद्ध परम्परा में उपर्युक्त दो शत्रुओं के वैमनस्य की एक कथा प्रचलित है। यहाँ वही कथा एक बार फिर सुनाई जा रही है। सम्बोधि प्राप्त करने के बाद बुद्ध जब श्रावस्ती स्थित जेतवन में विहार कर रहे थे तो उनके अनुयायियों ने उन्हें उल्लुओं द्वारा अनेक कौवों की संहार की सूचना दी। बुद्ध ने तब यह कथा सुनायी थी। सृष्टि के प्रथम निर्माण चक्र के तुरंत बाद मनुष्यों ने एक सर्वगुण-सम्पन्न पुरुष को अपना अधिपति बनाया; जानवरों ने सिंह को ; तथा मछलियों ने आनन्द नाम के एक विशाल मत्स्य को। इससे प्रेरित हो कर पंछियों ने भी एक सभा की और उल्लू को भारी मत से राजा बनाने का प्रस्ताव रखा। राज्याभिषेक के ठीक पूर्व पंछियों ने दो बार घोषणा भी की कि उल्लू उनका राजा है किन्तु अभिषेक के ठीक पूर्व जब वे तीसरी बार घोषणा करने जा रहे थे तो कौवे ने काँव-काँव कर उनकी घोषणा का विरोध किया और कहा क्यों ऐसे पक्षी को राजा बनाया जा रहा था जो देखने से क्रोधी प्रकृति का है और जिसकी एक वक्र दृष्टि से ही लोग

जैसे को तैसा

किसी जंगल में चार चोर रहते थे । वे चारों मिलकर चोरी करते और जो भी सामान उनके हाथ लगता उसे आपस में बराबर-बराबर बाँट लेते थे। वैसे तो वे चारों एक-दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते थे, किन्तु मन-ही-मन एक-दूसरे से ईर्ष्या करते थे। वे चारों अपने मन में यही सोचते थे कि यदि किसी दिन मोटा माल मिल जाए तो वह अपने साथियों को मारकर सारा माल हड़प लेगा। चारों चोर मौके की तलाश में थे। किन्तु उन्हें ऐसा मौका अभी तक नहीं मिला था। चारों चोर बहुत ही दुष्ट और स्वार्थी प्रवृत्ति के थे। एक रात चारों चोर चोरी की इच्छा में इधर-उधर घूम रहे थे। उन्होंने एक सेठ के घर में सेंध लगाई और घर के अन्दर घुसकर सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात, रूपया-पैसा सब कुछ लूटकर भाग गए। चारों चोर पुलिस से बचने के लिए दो दिन तक जंगल में भूखे-प्यासे भटकते रहे। सेठ ने चोरी की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी थी। सेठ की पुलिस विभाग में भी अच्छी जान-पहचान थी। चोरों को पकड़ने के लिए शहर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस फैली हुई थी। जंगल से निकलना चोरों के लिए खतरे से खाली नहीं था। चोरों की इच्छा थी कि अभी वे कुछ दिन जंगल में छिपे रहें। धीरे-धीर

दानबीर कर्ण की कहानी

कर्ण कुंती का पुत्र था | पाण्डु के साथ कुंती का विवाह होने से पहले ही इसका जन्म हो चुका था| लोक-लज्जा के कारण उसने यह भेद किसी को नहीं बताया और चुपचाप एक पिटारी में रखकर उस शिशु को अश्व नाम की नदी में फेंक दिया था | इसके जन्म की कथा बड़ी विचित्र है| राजा कुंतिभोज ने कुंती को पाल-पोसकर बड़ा किया था| राजा के यहां एक बार महर्षि दुर्वासा आए| कुंती से उनका बड़ा सत्कार किया और जब तक वे ठहरे, उन्हीं की सेवा-सूश्रुषा में रही| इसकी इस श्रद्धा-भक्ति से प्रसन्न होकर महर्षि ने उसे वार दिया कि वह जिस देवता को मंत्र पढ़कर बुलाएगी वही आ जाएगा और उसको संतान भी प्रदान करेगा| कुंती ने नादानी के कारण महर्षि के वरदान की परीक्षा लेने के लिए सूर्य नारायण का आवाहन किया| बीएस उसी क्षण सूर्यदेव वहां आ गए| उन्हीं के सहवास के कारण कुंती के गर्भ से कर्ण का जन्म हुआ| जब पिटारी में रखकर इस शिशु को उसने फेंक दिया, तो वह पिटारी बहती हुई आगे पहुंची| वहां अधिरथ ने कौतूहलवश उसे उठा लिया और खोलकर देख तो उसमें एक जीवित शिशु देखकर वह आश्चर्य करने लगा| अधिरथ उस शिशु की निरीह अवस्था पर करुणा करके उसे अपने घर

चोर के दाढ़ी में तिनका

बादशाह अकबर बीरबल से अकसर अजीब सवाल तो पूछते ही थे लेकिन एक दिन उन्होंने बीरबल को छकाने की एक तरकीब खोज निकाली। उन्होंने अपनी बेशकीमती अंगूठी छिपाकर एक सरदार को दे दी और उससे बात छुपाकर रखने के लिए कहा। जब बीरबल उनके पास आए तो बादशाह ने कहा, आज हमारी अंगूठी खो गई है। सुबह तो वह हमारे पास ही थी। शौच जाते वक्त मेंने उतार कर रखदी और जब वापस लौटा तो देखा कि अंगूठी गायब है", बीरबल चुपचाप सुनते रहे। बादशाह ने आगे कहा, मुझे यकीन है कि यह काम महल के ही किसी व्यक्ति का हुए। बाहरी आदमी ऐसी हिम्मत नहीं कर सकता। बीरबल! तुम ज्योतिषशास्त्र बखूबी जानते हो अतः चोर का पता लगाओ। बीरबल ने उस जगह का पता पूछा जहां उन्होंने शौच जाने से पहले अंगूठी रखी थी। बादशाह अकबर ने एक अलमारी की ओर इशारा किया । बीरबल ने उस अलमारी के पास जाकर उससे कान लगाकर कुछ देर बाद हटा लेने का नाटक किया। देखने से यह लगता था जैसे वह कोई बात सुनने की कोशिश कर रहा है। कुछ देर बाद बीरबल ने बादशाह की तरफ देखकर कहा, अलमारी साफ़ बताती है कि जिसके पास अंगूठी है, उसकी दाढी में तिनका है। बीरबल की बात को जब पास ही बैठे

शनि की दसा

Shani Sade Sati: ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को बहुत ही अहम माना गया है। कुंडली में शनि के शुभ भाव में रहने पर जातक को जीवन की तमाम सुख-सुविधाएं और ऐशो आराम की प्राप्ति होती है। सभी ग्रहों में शनि सबसे धीमी चाल चलने वाले ग्रह हैं। शनि एक राशि से दूसरी राशि में जाने पर करीब ढ़ाई वर्षो का समय लेते हैं। शनि 24 जनवरी 2020 से मकर राशि में गोचर हैं। इसके बाद शनिदेव 29 अप्रैल 2022 कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। शनि के राशि बदलने पर कुछ राशि पर शनि की साढ़ेसाती लग जाती है और कुछ से उतर भी जाती है। साल 2020 से शनि के मकर राशि में होने से इस समय धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती चढ़ी हुई है। मिथुन और तुला राशि पर शनि की ढैय्या है। आइए जानते है इन तीन राशि से कब हटेगी शनि की साढ़ेसाती? विज्ञापन राशि धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती कब तक? 29 अप्रैल 2020 से शनि मकर राशि को छोड़कर स्वयं की राशि कुंभ में प्रवेश कर जाएंगे। शनि के कुंभ राशि में प्रवेश करते ही धनु राशि पर से शनि की साढ़ेसाती का अंत हो जाएगा। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि शनि 2022 में वक्री चाल से चलते हुए फिर से म